
हमारे घर के सामने एक पार्क है जो की हमारे खेलने वाले दिनों में हमारे लिए लॉर्ड्स ग्राउंड से कम नहीं था। आज भले ही हम संडे को फ्री रहते है, पर उस ज़माने का संडे, क्रिकेट मैचों में फुल बिज़ी निकलता था। उन दिनों में, ना गर्मी, ना ठंड, कोई हमें खेलने से रोक नहीं पाता था, सिवाए नाथू की मम्मी के। 😬
नाथू, मेरे बगल के दो घर छोड़कर रहता था। ठीक ठाक खेल लेता था। बोलिंग उसको बिलकुल नहीं आती थी, बस बैटिंग ठीक कर लेता था। इसलिए बैटिंग उसको अक्सर लास्ट में ही मिलती थी , पर रोज़ खेलने ज़रूर आ जाता था। नाथू की मम्मी को पता था की उसे कम बैटिंग मिलती है, दिनभर बस फील्डिंग करता रहता है और दुसरो को खेलते देखता है। आंटी ने कई बार हमें डांटा भी है इस बात को लेकर। नाथू बड़ा प्लेयर तोह नहीं था पर हाँ हमारी टीम ज़रूर कम्पलीट कर देता था। 😇
ऐसे कई संडे निकल जाते थे, जब 12 बजे सूरज अपने चरम पर रहता था और उसकी मम्मी पार्क के गेट पर खड़े होकर चिल्ला-चिल्ला कर उसे घर आने के लिए कहती। आँखों में शर्मिंदगी लिए और मुंह लटकाये हुए, नाथू का गेम बीच में छोड़कर घर वापसी करना, हम सबके लिए एक आम नज़ारा था। 🙁
9th क्लास के वार्षिक परीक्षाएं ख़तम हो चुकी थी। गर्मी के २ महीने का कार्यक्रम फुल तैयार था और क्रिकेट का बिगुल पार्क में बज चुका था। ऐसे ही एक दिन बगल के मोहल्ले के साथ 3 मैचों की सीरीज खेलने का फैसला हुआ। हर मैच पर ₹25 दांव पर लगे थे। नाश्ता पानी का पूरा इंतेज़ाम था और चिलचिलाती धूप में भरपूर विटामिन-डी का सेवन हो रहा था। पहला मैच शुरू हुआ 9 बजे से। पढ़ने में शायद आपको फ़िल्मी सीन सा लग सकता है, पहला मैच में 43 रन का टारगेट मिला था, जो हमने बिना विकेट गंवाए जीत लिया। ₹25 आने की ख़ुशी में दूसरा मैच शुरू हुआ ही था कि नाथू की मम्मी ने ‘घर आजा जल्दी’ की आवाज़ लगा दी। नाथू थोड़ा शर्मिंदा हुआ पर उसने कहा अनसुना करते हुए हमें मैच जारी रखने का संकेत दिया। बढ़िया खेला हुआ दूसरे मैच में, 10 ओवर में 89 रन बने और शानदार जीत हुई , सामने वाली टीम की। 😒
अब निर्णायक मैच आ चुका था। दुनिया के सभी निर्णायक मैचों में एक कॉमन चीज़ होती है। चाहे कोई टीम मोहल्ले लेवल पर खेले या लॉर्ड्स मैदान में अंतर्राष्ट्रीय लेवल पर, हर टीम की फटी रहती है। दिलों की धड़कने अपने टॉप गियर में होती है। बस ऐसी ही कुछ तेज़ धड़कनो के साथ तीसरा निर्णायक मैच शुरू हुआ। सामने वाली टीम ने 10 ओवर में 63 रन का टारगेट दिया। दूसरी इन्निंग्स शुरू ही होने वाली थी कि नाथू की मम्मी ने फिर से आवाज़ लगायी – “चुप चाप १ मिनट में घर आ जा, नहीं तो ग्राउंड से कान पकड़ कर ले जाऊँगी”। ये सुनकर तो नाथू के साथ हम लोग भी थोड़े शर्मिंदा हो गए। हम लोगो ने नाथू से कहा की तू घर चले जा, मैच को हम लोग सँभाल लेंगे। पर नाथू ने ना हमारी बात मानी और ना ही अपनी मम्मी की और अंतिम पारी के लिए रुक गया। 🤨
सभी निर्णायक मैचों में एक और कॉमन चीज़ होती है , ‘दिलचस्प क्लाइमेक्स’। मैच कुछ ऐसे ही मोड़ पर आ चुका था जहाँ पर सभी अच्छे प्लेयर्स आउट हो गए थे और अब बस बिनोद और नाथू ही बचे थे। नाथू की मम्मी के गुस्से का पारा, जून की गर्मी के बरारबर सा हो गया था। अब नाथू की मम्मी ग्राउंड के गेट पर आ चुकी थी, वही दूसरी ओर नाथू स्ट्राइक एंड पर आ गया था। 4 बॉल का मैच बचा था और जीत के लिए बस 5 रन्स की ज़रुरत थी। 😯
एक तरफ जहा हमारी टीम नाथू की हौसला-अफ़ज़ाई कर रही थी वही दूसरी ओर आंटी गुस्से में “जल्दी आ जल्दी आ” चिल्ला रही थी। नाथू के दिल ओर दिमाग में न जाने क्या चल रहा था। उस पर हमारे शब्दों का असर हुआ या मम्मी के चिल्लाने का, उसने अगले ही बॉल पर गगन-चुम्बी छक्का लगा कर मैच को वही समाप्त कर दिया। ख़ुशी के लहर दौड़ चुकी थी और नाथू को गले लगाने से लेकर, कंधो पर बैठाने वाला कार्यक्रम भी शुरू हो चुका था। नाथू की मम्मी ये पूरा दृश्य देखते देखते पार्क के अंदर आ पहुंची। 😶
इसके बाद नाथू की जो घर वापसी हुई वो नज़ारा आम नहीं था ।
अत्यंत मनोरंजक 😆😊😆
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