मेरा एक मित्र है श्रवण नाम से। करियर के हिसाब से वो मेरे सभी दोस्तों में से सबसे अलग क्षेत्र में काम करता है। श्रवण मेरे मोहल्ले में नगर निगम की तरफ से सफाई कर्मचारी (स्वीपर) का काम करता है।

श्रवण और मेरी उम्र लगभग समान ही है। जब हम छोटे थे 12-13 साल के आस-पास तब श्रवण की मम्मी हमारे मोहल्ले में सफाई कर्मचारी का काम करती थी। श्रवण भी अपनी मम्मी के साथ काम में हाँथ बाँटने आ जाता था। श्रवण को क्रिकेट खेलना बड़ा पसंद था। जब हम मोहल्ले वाले मेरे घर के सामने वाले पार्क में खेलते थे, तोह वो पार्क की दीवार पर बैठकर हमारा मैच देखा करता था। जब कभी पार्क से बॉल बहार जाती, श्रवण भाग कर बॉल ले आता था । मोहल्ले के बड़े भईया लोगो ने कभी भी श्रवण को खेलने के लिए नहीं बुलाया।

पर जब कभी हम छोटी उम्र के लड़को को मौका मिलता पार्क में खेलने का, तोह अपनी टीम पूरी करने के लिए हम श्रवण को साथ खेलने बुला लेते थे। श्रवण अच्छा क्रिकेट खेल लेता था। पर जब भी वो हमारे साथ खेलता, हमेशा मैच के बीच में या बाद में कोई न कोई मोहल्ले की आंटी श्रवण को डाँट देती और खेलने से मना कर देती थी। कई बार श्रवण की मम्मी ने भी उसको डाँटा और मना किया हमारे साथ खेलने से।

उस ज़माने में मोहल्ला vs मोहल्ला क्रिकेट मैच बहुत हुआ करते थे। एक संडे पूरा पार्क हमें मिल गया, कोई भी बड़े भईया लोग का मैच नहीं था उस दिन। तोह हम छोटे उम्र के लड़को ने दूसरे मोहल्ले की टीम के साथ मैच खेलने का फैसला किया। श्रवण को मैंने पूछा की क्या वो अपने मोहल्ले की टीम को खेलने ला सकता है हमारे पार्क में? उसने हाँ भर दी। फिर संडे को 9 बजे से शुरू होने वाला था, क्रिकेट का घमासान मुकाबला सेक्शन -7 मोहल्ला vs कच्ची बस्ती मोहल्ला के बीच ।

हमारी पहली बैटिंग आयी। 4 ओवर में 32 रन का स्कोर चल ही रहा था कि मैच में बाधा आ गयी। बाधा के रूप में 3-4 अंकल और 4-5 आंटी चिल्लाते हुए आये और श्रवण की टीम को पार्क से बहार निकाल दिया। फिर उन्होनें हमसे पूछा की कच्ची बस्ती के लड़को के साथ खेलने की कहा जर्रूरत थी? किसने बुलाया उन्हे यहाँ मैच खेलने? मेरी टीम ने मेरी तरफ ऊँगली कर दी। फिर वो बाधा रुपी लोग मुझे डाँटने लगे। उस डाँट में उन्होनें एक बात बोली की बेटा उस श्रवण के साथ मत खेलो, तुम में और उसमें फ़र्क है। 13 साल के मैं को बस इतना ही फ़र्क पता था की:
मैं गोरा हूँ और श्रवण काला है।
मैं दाहिने हाथ का बल्लेबाज़ हूँ और श्रवण बहिने हाथ का बल्लेबाज़ है।
मैं स्कूल जाता हूँ और श्रवण हमारे मोहल्ले की नालियाँ साफ़ करता है।

पर शायद ये बहुत बड़ा फ़र्क रहा होगा क्यूंकि उस दिन के बाद श्रवण कभी हमारे साथ क्रिकेट नहीं खेला। पार्क से कभी बॉल बहार जाती थी तोह वो वापस फेंक देता पर अब, दीवार पर बैठ कर मैच देखना बंद कर दिया उसने। बातचीत हो जाती थी हम दोनों के बीच पर वो फ़र्क के चक्कर में दोस्ती कभी गहरी नहीं हो पायी।

अब मुझे समझ आता है की उस समय मोहल्ले वाले किस फ़र्क की बात कर रहे थे, जो उस वक़्त मुझे दिखाई नहीं दिया। पिछले एक साल से मैं अपने घर पर हूँ। श्रवण से मुलाक़ात हो जाती है कभी-कभी और फ़र्क तोह आज भी है हम दोनों में:
मैं प्राइवेट नौकरी करता हूँ और श्रवण सरकारी नौकरी करता है।
मैं अब क्रिकेट खेल नहीं पाता और श्रवण हर साल अपनी कच्ची बस्ती में एक क्रिकेट टूर्नामेंट करवाता है।
मैं स्वच्छ भारत अभियान का बस सोशल मीडिया पर पोस्ट लाइक करता हूँ और श्रवण स्वच्छ भारत अभियान के तहत सर पर कचरा उठाता है।

4 thoughts on “फ़र्क

  1. Marvelous theme of ur story
    u have put the Sarwan on status higher than u due to his noble karma of keeping the society clean higenic conducive for others to live

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