
“महीने का कितना कमा लेते हो?”
यह सवाल मुझसे एक 80 साल के बुज़ुर्ग बाओजी ने जोधपुर से नागौर जाने वाली रोडवेज बस में सफ़र करते समय पूछा।
नागौर जाना हो तो मैं आम तौर पर रोडवेज बस पकड़ता हूँ। एक दिन उसी तरह मैं बस में चढ़ गया। उस समय बस पूरी तरह भरी हुई थी और केवल खड़े होकर ही सफर करने का विकल्प था। मैं पीछे की तरफ जाकर खड़ा हो गया। जहां मैं खड़ा था, उसके बगल वाली सीट पर वो बुज़ुर्ग बाओजी और उनके साथ उनके पोते की उम्र का एक लड़का बैठा था।
बाओजी अपने पोते से अपने रिश्तेदारों को फ़ोन लगवाते और ज़ोर-ज़ोर से उनसे बात करते हुए सबको बता रहे थे कि वो जोधपुर से निकल चुके हैं। उनकी ऊँची आवाज़ और अलग अंदाज़ देखकर बस में पीछे बैठे और खड़े हुए यात्री मुस्कुराए बिना नहीं रह पा रहे थे।
जब बाओजी की सभी रिश्तेदारों से बातें पूरी हो गईं, तो उन्होंने मेरी तरफ नज़र घुमाई और मुझसे बातचीत शुरू की।
बाओजी ने पूछा – “कौन से कॉलेज में पढ़ते हो?”
मैं मुस्कराया – “साहब, मैं नौकरी करता हूँ। कॉलेज की पढ़ाई तो बहुत पहले ही पूरी हो चुकी।”
उन्होंने पूछा – “सरकारी नौकरी करते हो?”
मैंने कहा – “नहीं साहब, प्राइवेट नौकरी करता हूँ।”
उन्होंने फिर पूछा – “कहाँ काम करते हो?”
मैंने जवाब दिया – “बेंगलुरु की एक कंपनी में।”
फिर उन्होंने अपने निराले अंदाज़ में अगला सवाल किया – “तो महीने का कितना कमा लेते हो?”
मैंने मुस्कराकर सीधा जवाब देने के बजाय उनसे पूछा – “साहब, आपका गाँव कौन-सा है?”
उन्होंने तुरंत भाँप लिया कि मैं जवाब टाल रहा हूँ। हँसते हुए बोले – “मैं तो बावड़ी गाँव से हूँ। लेकिन तुम बताओ, तुम्हें प्राइवेट नौकरी में महीने का कितना मिलता है?”
चूँकि बाओजी बहुत ऊँची आवाज़ में बोलते थे, तो बस में पीछे बैठे लगभग 20–25 यात्री भी हमारी बातचीत बड़े ध्यान से सुन रहे थे। उनकी नज़रों से साफ़ झलक रहा था कि उन्हें भी बाओजी के ठसक अंदाज़ में मज़ा आ रहा है।
मैंने फिर से मुस्कराकर उनका सवाल टाल दिया।
उन्होंने नए तरीक़े से कोशिश की – “50,000 मिलते हैं?”
मैंने सिर्फ़ मुस्कराया, कोई जवाब नहीं दिया।
उन्होंने फिर कहा – “70,000 मिलते हैं?”
मैंने फिर वही किया।
फिर उन्होंने बढ़ा-चढ़ाकर कहा – “क्या 1 लाख मिलता है?”
अब माहौल ऐसा था, जैसे पूरी बस मेरी तनख्वाह का ऐलान सुनने वाली सभा बन गई हो।
बाओजी बोले – “बता दे बेटा, इतना क्या शर्मा रहा है? 1 लाख मिलते हैं क्या?”
इतने में पीछे बैठी एक आंटीजी ने तंज भरे अंदाज़ में कहा –
“अगर 1 लाख कमा रहा होता, तो ऐसी बस में खड़े-खड़े थोड़ी ना सफ़र कर रहा होता।”
उनके तंज पर सबके चेहरे हँसी से खिल उठे, और पल भर में माहौल हल्का-फुल्का हो गया। मैं भी मुस्कराते हुए उनके साथ हँस पड़ा।
सोचा भी नहीं था, कमाई का एक सवाल पूछते-पूछते बाओजी ने ऐसा हल्का-फुल्का माहौल बना दिया कि सफ़र एक किस्सा बन गया।
