
बहुत दिन हो गए थे कोई कहानी कोई लिखे हुए। ख्याल बहुत से थे पर उन्हें रूप नहीं दे पा रहा था। सोचा की क्रिएटिव लेखकों की तरह थोड़ा जगह में बदलाव करेंगे तोह शायद कोई कृति को पन्ने पर उतारा जा सके। कुछ फिल्मों में देखा है की हीरो-हीरोइन एक कूल से कैफ़े में बैठ कर, कॉफ़ी और लैपटॉप के साथ ऐसा कुछ काम करते रहते हैं। अपने घर से कुछ 100 मीटर की दुरी पर ही है ऐसा एक कैफ़े है। बस निश्चय कर लिया, कमरें की कुर्सी से उठकर कैफ़े की कुर्सी पर तशरीफ़ रखने का। चल पड़े अपन। 🙂
नयी जगह की एक और ख़ास बात होती है, वहाँ पर नए जोश से शुरुआत हो जाती है। बस उसी नयी ऊर्जा के साथ अपन लिखना शुरू हो गए। कहानी के पात्र बनाने लगा, फिर थोड़ा एंडिंग पर सोचने लगे और जब बीच का मसाला तैयार हुआ तोह खट से लैपटॉप में टाइप करने लगा। इन सब के बीच 100 रुपए की एक गरम कॉफ़ी पी चुका था। थोड़ा और बैठना था तो दूसरी भी आर्डर करनी पड़ी। दिल, दिमाग और लैपटॉप पर हाथ, सब तेज़्ज़ी से चल रहे थे। कहानी के मध्य में आया ही था की लैपटॉप रुक सा गया। फिर मैं आतुरता से इधर उधर क्लिक करने लगा, तो लैपटॉप अचानक से हैंग हो गया। 😞
सच बोलों तोह उस पल में, मैं उस बेजान लैपटॉप से ज्यादा अपनी किस्मत को कोसने लगा।। मैं विधाता से पूछने लगा की आखिर मेरे जर्रूरी काम के बीच ही, क्यों होता है ये सब? चेहरे पर सिकंजे आने लगी थी अब। “चल-जा, चल-जा” कहकर हलकी आवाज़ में बड़बड़ाना शुरू हो गया था मैं। पर लैपटॉप अपने हैंग होने वाली स्थिति से बिलकुल नहीं हिला। अब चेहरे पर गुस्से ने टेकओवर कर लिया, पर इस निर्जीव लैपटॉप को इससे क्या करफ पड़ता? वो तोह टस से मस न हुआ। 😒
मेरे से २ टेबल दूर ही एक सज्जन पुरुष मेरी इस दुर्गति को देख रहे थे। मेरी नज़र उनकी ओर गयी तोह उन्होंने मुझे इशारा करके बुलाया। मैं अपना ग़मगीन चेहरा लेकर उनकी टेबल पर जा पहुँचा। सज्जन पुरुष बोले की,”बेटा, एक अनजान का ज्ञान लोगे?” मैंने हामी भर दी। 😌
“आपको निराश होकर देख कर ऐसा लगा की आप शायद अपनी किस्मत को कोस रहे हों। उसी से मैं अनुमान लगा रहा हूँ की आप में इंतज़ार करने का स्किल नहीं है। माफ़ कीजियेगा आपको जानता नहीं हूँ , पर ऐसा लगता है की आप इंतज़ार को एक निष्क्रिय गतिविधि की तरह मानते हैं। इसमें आपकी कोई गलती भी नहीं , टाइम इस मनी का नारा हमारे समाज में काफी हावी जो है।”
“जबकि मैं स्पष्ट करना चाहूँगा की जिन लोगों ने भी वो मनी कमाया है या किसी क्षेत्र में सफलता हासिल की है, वो सब अपनी मेहन्नत , किस्मत और इंतज़ार की अहमियत की क़द्र करते हैं। इंतज़ार का समय कोसने के लिए नहीं होता है। उस समय में तोह अपने बीते हुए पलों को जीया जाता और आने वाले कल के ख़्वाबों को बुना जाता है। ये इंतज़ार का पल बड़ा ही खूबसूरत होता है। यकीन मानिये, ये ही वो कुछ चंद पल होते हैं जब आप आत्मचिंतन और आत्ममंथन करके अपने जीवन को दिशा दे सकते हो। आपको समझना चाहिए की इंतज़ार करना एक सक्रिय गतिविधि है, निष्क्रिय नहीं।
वो कहते हैं ना, की सब्र का फल मीठा होता है। अब देखो मीठे का तोह पता नहीं पर धैर्य रखने पर फल पक्का हुआ मिलता है जिसमे स्वाद जर्रूर होता है। मैं उन सज्जन पुरुष की बात का सार समझ गया। उनकों धन्यवाद कहकर, अपनी टेबल पर आकर, अपनी कहानी पर फिर से लग गया। अनजान का ज्ञान तो मिला ही और इंतज़ार के बाद कहानी भी। कैफ़े के 200 रुपए वसूल एकदम। ✅