मेरे एक सीनियर ने मुझसे एक बात साझा की थी,
“ज़रूरी नहीं कि हर कही गई बात के पीछे कोई ठोस तर्क हो,
लेकिन यह ज़रूरी है कि वह बात कही गई है।”

अक्सर मैंने लोगों को कहते सुना है,
“किसी से क्या बात करें, हमारे बीच तो कुछ भी कॉमन नहीं है।”
देखा जाए तो उनकी बात तर्कसंगत है, हर संवाद के लिए कोई साझा विषय होना चाहिए।
लेकिन सच यह भी है कि कई बार, साझा विषय होने के बावजूद लोग आपस में संवाद नहीं करते।

मेरे लिए तो बात करना बहुत ज़रूरी है।
इसलिए जिनसे भी बात करने में मुझे रुचि होती है, मैं उनसे खुलकर संवाद करता हूँ।
अपनी अच्छाइयाँ, गलतियाँ, समझदारी और नासमझी, सब कुछ बाँट देता हूँ।
मेरे लिए अब यह कोई प्रतियोगिता नहीं रही कि हर बात से किसी को इम्प्रेस करना है।
मैं तो बस अपने विचारों को उनके साथ एक्सप्रेस करना चाहता हूँ।

हाँ, कुछ संवेदनशील मौकों पर मैं संयम से काम लेता हूँ।
मुझे यह भी स्वीकार है कि मेरी कई बातें गलत हो जाती हैं, जो सामने वाले को आहत कर सकती हैं।
कभी-कभी सोचता हूँ, क्या इतना बोलना वाकई ज़रूरी है?
लेकिन जब भी चुप रहता हूँ, तो वह मेरे लिए ज्यादा संतोषजनक नहीं होता।
शायद बोलकर ही मेरा मन और सोच बेहतर ढंग से काम करता है।

यह भी सच है कि मैं हर दोस्त या रिश्तेदार से नियमित रूप से बात नहीं करता। हर किसी के साथ खुलकर बातचीत भी नहीं हो पाती। लेकिन मुझे लगता है कि जब भी उनसे बात होगी, तो मैं कोई तुक-वुक नहीं देखूंगा, बस सीधा बात कर लूंगा।

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