
दर्द उस अप्रिय अनुभव का नाम है जो मनुष्य को इस संसार में शारीरिक दर्द और भावनात्मक दर्द के रूप में मिलता ही है। मनुष्य संसार में आता ही अपनी माता को दर्द देकर है और जाता भी अपने करीबियों को बिछड़ने का दर्द देकर है। बाकी जीवन काल में अनेको प्रकार के दर्द तोह समय-समय पर मिलते ही रहते हैं।
अपने जीवन में शारीरिक दर्द से रुबरुं मैं कई बार हो चूका हूँ। 4 उँगलियों में फ्रैक्चर होना, कांच का पैर में घुसना, अपेंडिक्स का ऑपरेशन जैसे इत्यादि दर्द देखे। भावनात्मक दर्द तोह अब बड़े होने पर काफी मिलने लगे हैं, जैसे करीबियों का साथ छूट जाना, घर की खटपट, समाज में लड़ाइयाँ, असहाय लोगों की दुर्दशा देखकर। हर दर्द का अपना एक घाव रह जाता है। कुछ दर्द में तोह बहुत कठिन होता है समय निकालना।
इन बीते हुए अनुभवों से ये भी ज्ञात हुआ की समय के साथ-साथ इन दर्द से उभरा भी जा सकता है। दर्द से छुटकारा पाने के लिए शॉर्टकट्स नहीं ढूंढ़ता। दर्द में होते हुए बुरी भावनाओं और विचारों (गुस्सा, दुःख, डर, खेद) को महसूस करता हूँ। उनसे उभरने के लिए अपने शारीरिक और मानसिक को शश्क्त करने के कोशिश करता हूँ। ऐसे समय में खुद से बहुत बातें करता हूँ। दर्द झेलने की आधी मदद तोह मैं खुद ही कर लेता हूँ। बाकी भगवान् का आशीवार्द और अपनों का साथ मिल जाता है दर्द का सामना करने के लिए।
P.S- दर्द को glamorize नहीं बस normalize करने की जर्रूरत है।
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