
जीवन में खालीपन वो अनुभति है जब आपको अंदर से किसी भी चीज़ के लिए कोई फीलिंग्स नहीं आ रही हो। काम करना है पर मन बिलकुल नहीं, भूख है पर खाने की इच्छा नहीं, लोगों से मिलना है पर मन एकदम नहीं। अपने अंदर जब भावनाएँ छुपने लगे तोह वो हमें खालीपन की ओर ले जाती है। ऐसे समय में हम दुनिया की हर चीज़ के अस्तित्व को सवाल करते हैं। जैसे, इससे क्या फायदा होगा? क्या पॉइंट है ये सब भाग-दौड़ का? क्यों करना सबको इम्प्रेस?
मुझे जीवन में फिलहाल इस प्रकार के खालीपन का एहसास तोह नहीं हुआ है। पर मैंने अपने कुछ लोगों से उनके खालीपन के अनुभवों को सुना है। कुछ बड़े लोगों ने इंटरव्यू में भी उन्होंने अपने खालीपन का ज़िक्र किया है। वो बताते हैं, की खालीपन उन्हें अंदर से काटने लगता है। ऐसे समय में वो खुद को बाकी सब दूर कर लेते हैं ताकि उनकी मायूसी सबके सामने नहीं आये। ये समय में उनको अपनी वीरानी की दुनिया ज्यादा आरामदेह लगती है।
खालीपन का सही समाधान तोह मनोचिकित्सक बता सकेंगे। पर मेरे समझ के हिसाब से हमें खालीपन की तन्हाई को स्वीकारना चाहिए। इससे बहार आने के लिये कोई छोटा-बड़ा मकसद को पकड़ना चाहिए जिससे हम पर सकारात्मक प्रभाव पढ़े। फिर चाहे वो छोटी खुशियाँ मनाना हो, किताबें पढ़ना या फिर ध्यान लगाने जैसे कार्यों को करना हो। इन जैसे कार्यों से निकलने वाली संवेदनाएँ ही हमारे खालीपन को भर्ती है। जीवन के अस्तित्व को सवाल करना अच्छी बात है पर उसका उतर निकालने का दायित्व भी तोह हमारा होना चाहिए।
P.S- खालीपन में भावनाएँ लुकाछुपी का खेल खेलती हैं। बस आपको उन्हें ढूंढने की देर है।
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