कल मुंबई से जोधपुर के लिए सूर्यनगरी एक्सप्रेस में बैठा था। कोरोना जैसी आपदा के बीच घर जाने का उत्साह भी था और थोड़ा डर भी। ट्रैन में भी माहौल थोड़ा गंभीर सा था। मेरे लिए सफर बिना किसी के साथ बातचीत हुए थोड़ा मुश्किल सा निकलता है। ट्रैन में फ़ोन का नेटवर्क भी भगवान् भरोसे चलता है इसलिए किसी से फ़ोन पर बात नहीं हो पाती। मेरी उम्र के लोग फ़ोन और लैपटॉप पर मूवी देख रहे थे और कुछ सीनियर लोग अखबार पढ़ रहे थे और कुछ सो रहे थे। तो वहाँ पर कोई बातचीत करने की दिलचस्पी भी नहीं दिखा रहा था|भले ही ट्रैन में कोई आपसे बात ना करे पर एक इंसान रहता है जो आपसे ज़रूर बात करता है- टीटीई साहब |

इतने सालो से ट्रैन के सफर से मैंने सीख लिया है की टीटीई साहब कब और कहाँ उपलब्ध रहते है बातचीत करने लिए। यकीं माने आप, उन्हें भी अच्छा लगता है की कोई उनसे सीट एक्सचेंज या RAC कन्फर्म करवा दो प्लीज के अलावा भी बात करे। अपनी ट्रैन के टीटीई साहब का चक्कर लग चुके थे और वह अपनी फिक्स सीट पर जाकर बैठ चुके थे।

मेरा सफर बिना बातचीत के निकल नहीं सकता था तो अपन पहुँच गए उनके पास और शुरू हो गए नमस्ते सर, कैसे हो आप, क्या हालचाल जैसे सवालो से बातचीत शुरू कर दी। फिर एक सवाल का इतना बड़ा एकालाप देंगे टीटीई साहब ये मुझे नहीं पता था। मैंने उनसे पूछा की सर आप कई सारी ट्रेंस देखते हो, इतने सारे लोगो की टिकट्स चेक करना, उसके बाद ऑफिस में लिखा पड़ी करना सो अलग, उसके बाद ट्रैन लेट हो जाए तोह भी खड़े रहना, यह सब देख कर आपको तनाव नहीं आता क्या? वह बोले-

” बेटा तनाव तो आता है और सिर्फ नौकरी में ही नहीं नौकरी के अलावा भी कई बातों पर आता है। तनाव की ख़ास बात बताता हूँ तुम्हे|जैसे ही हम पैदा होते है तबसे तनाव शुरू हो जाता है|पैदा होते ही कुछ महीनों के बाद हमें जल्दी चलने का, बोलने का, खेलने का तनाव भी हमारे परिवार वाले धीरे धीरे दे देते है।

जब हम थोड़े बड़े हो जाते हो तो क्लास में अच्छे मार्क्स का, खेल खुद में अच्छा होने का या टीचर के नज़रो में अच्छा रहना का तनाव तो हम सबने अपने बचपन में लिया ही होता है। घर पर लड़ाई भले ही माँ-बाप के बीच हो या रिश्तेदारों के साथ पर उसके कारण हुए तनाव का असर तो हम बच्चे भी महसूस करते है।

थोड़े और बड़े होते ही बोर्ड्स में अच्छे नंबर, अच्छी कॉलेज, अच्छी ब्रांच,अच्छी नौकरी, सरकारी एग्जाम की तैयारी का तनाव भी देश के हर युवा-युवती ने समय के साथ सहा होगा। नौकरी के बाद कई युवां-युवतियों को लगता होगा की उसका तनाव कम हो जाएगा पर ऐसा नहीं, ऑफिस में बॉस को लेकर या किसी सहकर्मी या टारगेट मीट ना होने के कारण हर नौकरी पेशे वाले को तनाव आता ही है।

फिर उस युवा/युवती की शादी हो जाती है। अब घर सँभालने से लेकर रिश्तेदारों से मिलने तक सब कुछ अच्छे रीती रिवाज़ों से करने का तनाव शुरू हो जाता है। फिर वो ही बच्चे, उनका स्कूल, उनकी जीवन शैली, पढाई का लोन, उनका व्यवसाय उनकी शादी का लोन इत्यादि तनाव समय के साथ-साथ आते रहते है|परिवार के अलावा समाज से जो आर्थिक मन्दी, राजनैतिक लड़ाई, धर्म के नाम पर दंगो, आतंकवाद , प्रदुषण इत्यादि मसलों का तनाव भी हम अपने जीवन में भोगते ही हैं।

बेटे आपने ये तो सुन्ना ही होगा लोगो से कि चिंता ना करो, ये बुरा वक़्त निकल जाएगा| बिलकुल सही बात है बुरा वक़्त निकल तो जाता है पर तनाव तो किसी न किसी रूप में रहता ही है। तनाव समय पर निर्भर नहीं रहता है बेटे, लोगो के अच्छे वक़्त में भी तनाव उनके साथ रहता है। देश के प्रधानमंत्री को भी अपना पद और लोकप्रियता चले ना जाए इसका तनाव सदैव रहता है|

फिर तनाव के लिए लोग सकारात्मक रहो, योग करो, ध्यान लगाओ ,अच्छी नींद लो जैसे सुझाव देते है|इनसे तनाव कम होता होगा पर ख़तम नहीं होता है। तनाव खुश इंसान या दुखी इंसान के उप्पर भी निर्भर नहीं रहता और ना ही आमिर-गरीब का फर्क देखता है, ये सबको रहता है। दलाई लामा को ही ले लो जो आध्यात्मिक रूप से सम्पूर्ण हैं पर अगला दलाई लामा चुनने में और चीन के रवैये के कारण तनाव तो उनको भी रहता ही होगा।

बेटे तनाव हमारे जीवन काल का एक अभिन्न अनुभव है। ये तनाव हम चाह व बिना चाह से संसार में एक दूसरे को दे रहे है। पैदा होने पर माँ को देते है और मृत्यु पश्चात चाहने वालों को देते है। पूरी दुनिया में यह तनाव इधर से उधर पास हो रहा है|
अब बताओ, तुम्हे तुम्हारे सवाल का इतना बड़ा जवाब सुनकर तनाव मिला, की नहीं ?😅

7 thoughts on “टीटीई साहब और तनाव

  1. वाह, ये तनाव भी जो सोचे समझे उसे ही होता है,हर किसी को नहीं।

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