
चिंता उस साधारण भावना का नाम है जो हमारे रोजमर्रा के जीवन में आती-जाती रहती है। साधारण इसलिए बोल रहा हूँ क्यूंकि चिंता होना हमारे शरीर की तनाव के प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है। लेकिन ये ही चिंता हमें अक्सर किसी कार्य से पहले या उसे करते समय घबराहट, उत्तेजित, चिड़चिड़ापन इत्यादि जैसे लक्षण दिखाने लगे तोह ये साधारण से खतरनाक भावना का रूप बदल लेती है।
मेरा और चिंता का बहुत ही सीधा रिश्ता है। जो कार्य या बातें मेरे नियंत्रण में रहती है जैसे बैटिंग करना, परीक्षा की तैयारी करना, ऑफिस का काम, रिलेशनशिप में मेरा रोल इत्यादि उसको कैसे अच्छे ढंग से करें इसकी साधारण चिंता तोह मैं करता रहता हूँ। लेकिन जो भी चीज़ें मेरे नियंत्रण के बहार है जैसे मैच और परीक्षा का परिणाम, ऑफिस में प्रमोशन, जल्दी पैसे कमाना आदि से मिलने वाली खतरनाक चिंता को अपने ऊपर हावी नहीं होने देता। ऐसा नहीं की मैं बहुत बहादुर/ग्यानी/संत बन गया हूँ, पर बचपन में कही पढ़ा था की चिंता चिता के समान होती है। इसलिए तब से ही खतरनाक चिंता से दूर रहने की कोशिश करता रहता हूँ।
मैं भलीभांति अवगत हूँ की हम सब कई सारी चिंताओं से जूझते रहते है। किसी के बातें तोह किसी का कार्य, किसी के ख्वाब तोह किसी की सच्चाई, ये सब हमारी चिंताओं के कारण बनते हैं। चिंता हमारी आत्मा को डरा देती है, हमें अपनी काबिलियत पर संदेह भी करा देती है। पर हमें कोशिश करनी है चिंता के डर को भगाने की। सत्य ये ही है की चिंता तोह जीवन का अमूल्य हिस्सा है। अब उसके साथ फ्री में मिलने वाला डर हमको लेना है या नहीं, ये तोह हम पर निर्भर है।
P.S- चिंता भी करो और चिंतन भी, पर दोनों स्वाद अनुसार।
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