
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, जिससे आत्महत्या के प्रयास अब एक आपराधिक अपराध नहीं है और उत्तरजीवी को सजा से बाहर रखा जाएगा। अब हमारे आम जीवन में इस निर्णय का कोई सीधा प्रभाव तोह नहीं है फिर ये ऐतिहासिक कैसे हुआ? दरअसल सुप्रीम कोर्ट मानता है की खुद को नुक्सान पहुँचाना कोई आपराधिक अपराध नहीं है क्यूंकि खुद को नुक्सान पहुँचाने की परिस्थिति में इंसान तब ही आता है जब वो अत्यधिक तनाव या भावनात्मक दर्द से गुजर रहा होता है। इसलिए ऐसे समय में इंसान को दोषी करार करने से बेहतर उसकी मानसिक स्तिथि को ठीक करना जर्रूरी है।
मुझे आज भी याद है जब 2017 में मेरे एक मित्र का फ़ोन आया था। उसका सरकारी एग्जाम का प्रीलिम्स क्लियर नहीं हुआ था उसके तीसरे प्रयास में। उसको पंखे से लटकर अपने असफलता के दर्द को ख़तम करने का मन कर रहा था। भगवान् कसम ये बात सुनकर मेरे पैरों तल्ले ज़मीन ही खिसक गयी। मैं 20-30 सेकण्ड्स तोह समझ ही नहीं पाया की उसको क्या प्रतिक्रिया दूँ? पर प्रतिक्रिया देने से बेहतर मैंने उससे पूछा की उसे ऐसा क्यों फील हो रहा है? इसके बाद उसने अपने मन का सारा दर्द और भड़ास बहार निकाला। वो बात करते दौरान रोया भी और मैंने उसकी बात पूरी ध्यान से सुनी बिना टोके। हमारी पूरी 2 घंटे कॉल के बाद वो खुद से बोला की, “थोड़ी अब रेस्ट कर लेता हूँ। बात करके थोड़ा हल्का महसूस कर रहा हूँ इसलिए तू चिंता मत करना कोई गलत कदम नहीं उठाऊँगा मैं।”
ब्लेड से हाथ काटना, ड्रग्स और दारु की लत से खुद को नुक्सान पहुँचाने का प्रयास कई लोग करते हैं। मैं उनकी स्थिति से हमदर्दी रखता हूँ। पर नुक्सान पहुंचे वाले किसी भी तरीके को समर्थन नहीं करता। मैं तहे दिल से चाहता हूँ की कभी भी अगर आप खुद को नुक्सान करने वाली स्थिति में पहुँच गए हैं तोह कोई गलत कदम उठाने से पहले किसी अपने करीबी से इस बारें में जर्रूर बात करें। क्यूंकि आपके कदम के परिणामों का अफ़सोस आपके करीबियों को ज़िन्दगी भर रहेगा। वो हमेशा ये ही सोचेंगे की काश आपने उनसे एक बार बात कर ली होती। काश उन्हें एक मौका मिल जाता आपको गलत कदम उठाने से पहले रोकने का। बात करते वक़्त आपको शायद शर्म भी आ जाए पर ज़िन्दगी की शिकायतें अपनों से ही तोह की जाती है, गैरों से नहीं।
P.S- खुल सकती है गांठे बस ज़रा से जतन से, मगर लोग कैंचियां चला कर सारा फ़साना बदल देते हैं।
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