
नकारात्मक सोच हमारे दिमाग में वो पौधा है जिसका बीज भी हम बोते है और उसको बड़ा करने का पानी भी हम ही देते है। निजी ज़िन्दगी में कुछ ऐसी घटनाएं हो जाती है जिनसे नकारात्मक विचारों को दिमाग में एंट्री मिल जाती है। इस दौरान हम खुद पर अक्सर संदेह, बेकार, हारा या बेवकूफ सा महसूस करते है। खुद की कमियों इतनी बड़ी लगने लगती है की अपनी सोच पर ही शंका कर लेते हैं और अपनी बात भी नहीं रख पाते हैं।
मुझे आज भी एक ऐसा नकारत्मक विचार अपने लुक्स को लेकर आता है। कभी कोई मेरे लुक्स की अगर तारीफ कर दे तोह दिमाग का एक हिस्सा हल्का-सा खुश होकर सामने वाले का धन्यवाद कह देता है पर दूसरा हिस्सा वो तारीफ ले ही नहीं पाता। लुक्स की तारीफ होते ही खुद पर शंका कर बैठता हूँ। पता नहीं क्यों, पर मेरे दिमाग में ऐसा बैठा हुआ है की, वो जो होती है एक पारम्परिक खूबसूरती, वैसी बिलकुल भी नहीं है मेरे पास। इसलिए हमेशा ऐसे लुक्स वाली प्रशंसा पर थोड़ा संशय हो जाता है। अब ये मनोग्रंथि आयी कहाँ और कैसे है ,वो मुझे नहीं पता पर इस नकारत्मक विचार ने मेरे दिमाग में अपनी जगह बना रखी है।
पर इस मनोग्रंथि का मेरी बाकी प्रतिभाओं पर बिलकुल प्रभाव नहीं है। मैंने अपने दिमाग की नकारत्मक बातों को एक अलग कमरा दे रखा है। ना तोह मैं उस कमरे में दिन भर रहता हूँ और ना ही उन्हें घर के बाकी कमरों में ले जाता हूँ। मेरी इस एक नकारत्मक शंका को मैंने अपनी बेबाकी, आत्मविश्वास, समझदारी पर हावी नहीं होने दिया। मुझे ऐसा लगता है की मेरे करीबी लोग मुझे मेरे लुक्स पर नहीं बल्कि मेरे मूल्यों पर मेरा आंकलन और पसंद करते होंगे। मैं आज भी बहुत सी गतिविधयों व समाज के तौर तरीकों में पीछे और कमज़ोर हूँ, पर मुझे अपनी कमियों का अफ़सोस नहीं है। मैं अपनी कमियों से उपजे नकारत्मक सोच के पौधे की जड़ें बढ़ने नहीं देता।
P.S- नकारात्मक वो खुला दरवाज़ा है जो तनाव को अंदर आने देते है।
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