
जैसे कुदरत में पशुओं और पेड़ों की कुछ प्रजातियां विलुप्त होते जा रही है। ठीक उसी प्रकार धैर्य रखने की कला हम इंसानों में विलुप्त हो रही है। इस सूचना अधिभार वाले ज़मानें में हमारी ध्यान अवधि और धीरज की क्षमता दोनों कम हो रही है। सब्र का फल मीठा होता है, पर आज के समय में इस फल का सेवन कम किया जा रहा है।
मैं खुद बड़ा बेसब्र हो जाता हूँ अगर कोई ऑफिस में मुझे 2 मिनट काम के लिए 10 मिनट इंतज़ार करवा दे। मेरा तोह आधा किलो खून जल जाता है इस बेसब्री के चक्कर में। डिजिटल पेमेंट के दौरान पेमेंट अटक जाने पर भी मेरे धैर्य का रिसाव होने लगता है। मगर मैंने धैर्य रखने के प्रतिफल को भी चख रखा है। रिश्तों में रखे धैर्य से मुझे मजबूत परिवार और दोस्त मिले हैं। व्यावसायिक क्षेत्र में धैर्य रखने से मुझे नए अनुभवों और काबिल लोगों के साथ बैठने का मौका मिला है। परीक्षा की तैयारी में धैर्य रखने से मैं मानसिकरूप से मज़बूत तथा दृढ़ता और अनुशाशन जैसे मूल्यों को जीवन में अपना सका।
ये भी सत्य है की ज़माना तेज़ हो गया अब। खाना आर्डर करने से लेकर मनोरंजन तक सब तुरंत मिल जाता है। स्टार्टअप के दौर में जल्दी परिणाम निकालना और आगे बढ़ना तोह मुख्य कार्यशैली बन गया है। अब ये सही या गलत इस पर फिर कभी चर्चा करेंगे। फिलहाल तोह मैं प्रकाश डालना चाहता हूँ की धैर्य रखना एक कला है जिससे हमें सीखना चाहिए। धैर्य रखना वो कला है जो हमें आवेग में लेने वाले निर्णयों से बचा सकता है। धैर्य रखना वो कला है जो हमें तनाव से मिलने वाले नुक्सान से बचा सकता है। धैर्य रखना वो कला है जो हमें लम्बे समय में मिलने वाले परिणाम देता है। धैर्य रखना वो कला है जो हमें ज़िन्दगी के पलों को जीने का मौका देता है।
P.S- मैं सब्र के फल को मीठा नहीं बल्कि अमृत के सामान मानता हूँ।
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