
मिच्छामी दुक्कड़म अर्थात एक दूसरे से क्षमा याचना करना। जैन धर्म के अनुसार पर्युषण पर्व के आखिरी दिन को सभी लोग एक-दूसरे से जाने-अनजाने में हुयी गलतियों के लिये ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहकर माफी मांगते हैं। बहुत ही अध्भुत पर्व लगता है ये मुझे। सुना है की क्षमा देने वालों का बड़ा दिल होता है। पर क्षमा मांगने वालों का भी बहादुर दिल होता है। क्षमा देने वाला अपने क्रोध को त्याग करके माफ़ी देता है। वहीं क्षमा मांगने वाला अपने अहंकार से ऊपर उठकर माफ़ी मांगता है।
अपने लड़कपन के समय में मैंने बहुतों का मज़ाक उड़ाया, दिल दुखाया पर उनसे माफ़ी नहीं मांगी। मुझे लगता था की क्षमा मांगना कमज़ोर होने की निशानी है। पर मैं गलत था। माफ़ी मांगने के लिए जिगरा होना चाहिए। मैं अब ये इसलिए कह सकता हूँ की, कभी ऑफिस या घर पर मेरे से यदि कुछ गलत हो जाता है, तोह मैं अपनी गलती स्वीकार कर लेता हूँ। अब चूँकि मुझे माफ़ी मांगना आता है इसलिए अब मुझे दूसरों को माफ़ करना भी ज्यादा मुश्किल नहीं लगता है।
क्षमा करना और मांगना दोनों, एक प्रकार की स्वीकृति है। क्षमा करने वाला को स्वीकारना चाहिए की यदि किसी ने आपको जाने-अनजाने में कष्ट पहुँचाया तोह वो आपके नियंत्रण में नहीं था। क्षमा मांगने वाले को स्वीकारना चाहिए की उसकी जाने-अनजाने की गलती से सामने वाले को आहात हुआ है तोह उसके लिए खेद है तथा ऐसी गलती वो फिर दुबारा नहीं करेगा। अब देखो मनुष्य योनि में जन्म हो चुका है हमारा तोह बिना गलतियां किये नहीं रह सकते हैं। पर क्षमा करने और मांगने से उन गलितयों से आगे बढ़ने की हिम्मत और रास्ते दोनों मिल सकते हैं।
P.S- माफ़ करना सीखिए क्यूंकि हम भी ईश्वर से यही उम्मीद रखते हैं।
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