
उम्मीद वो द्विविध शब्द है, जो पूरी होने पर दुनिया जीतने जैसी और पूरी ना होने पर दुनिया ख़तम होने जैसी भावनाएं देता है। आप दुनिया का कोई भी सफल किस्सा उठा लो, उसकी शुरुआत किसी एक उम्मीद से ही हुई थी और आप दुनिया का कोई भी असफल किस्सा भी उठा लो उसका अंत किसी की उम्मीद टूटने ही से होती है। उम्मीदी इंसान से हथोड़े से पहाड़ तोड़ने जैसे कठिन कार्य करवा सकती है और ना उम्मीदी इंसान से घर के छोटे काम तक नहीं करवा सकती है। उम्मीद के साथ हमारा जो द्वन्द चलता है ये बड़ा ही अनोखा है।
मैं उम्मीदी इंसान की श्रेणी में आता हूँ। आशावादी रहना मेरे बुनियादी मूल्यों में से एक है। बचपन में अपने से बड़े लोगों की टीम को क्रिकेट में हराने की उम्मीद रखता था। कुछ साल लगे, बहुत सी हार और थोड़ी ज़िल्लत भी देखी पर जिस दिन उनसे पहली बार जीता थे तब जीत से ज्यादा उस उम्मीद का जश्न मनाया था। सिविल सर्विसेज क्रैक करके जीवन में सफल होने की भी एक उम्मीद थी मेरी कुछ साल पहले। मेहनत भी की पर असफलता हाथ लगी। निराश भी हुआ था मैं उस परिणाम से। फिर गहन चिंतन के बाद निर्णय लिया की जीवन में सफल होने की उम्मीद तोह और भी कई माध्यमों से पूरी की जा सकती है। बस लग गए फिरसे मेहनत करने, इस बार व्यावासिक क्षेत्र में। ईश्वर की असीम कृपा और अपनों के आशीर्वाद से इस क्षेत्र में छोटी-छोटी सफलताएं भी मिल रही है।
मुझे लगता है की उम्मीद खो देना, विश्वास खो देने के समान है। अब हमारे जीवन क्रम में इतनी घटनाएं होती हैं की कभी-कभी निराशा तोह हाथ लगेगी ही। सीधा तर्क है भाई, कोई जीतेगा तोह कोई हारेगा भी। निराशा महसूस जरूर करो, उसका गुस्सा भी निकालो और दुःख-दर्द भी साझा करो, पर निराशावादी इंसान मत बनो। इस दुनिया के संचालन के लिए आशावादी लोगों की संख्या ज्यादा होनी जरुरी है। याद करो आपने जब भी कोई कार्य शुरू किया था तोह किसी सफल-आशावादी से प्रेरणा लेकर किया था ना की किसी निराशावादी से।
P.S-निराशा शब्द तोह खुद आशा शब्द साथ लेकर घूमता है, फिर आप आशा को कैसे छोड़ सकते हो?
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