
जैसा की मैं कई बार बता चुका हूँ की कॉलेज (आईआईटी रुड़की) में अपना भोकाल अप्पार था। घमंड की बात नहीं है, बस ये है की वो भोकाल भी मेहनत से बना था। लोगो से अच्छे रिश्ते बनाना, मदद लेना और करना और उनके साथ व्यवहार रखना, ये सब मुझे पसंद भी था और मैंने 4 साल जमके किया भी।
ये सब होने के बावजूद वहाँ पर अपना फीमेल इंटरेक्शन कम ही रहा। इससे पहले की आप मुझे जज करना शुरू कर दो, की मुझे बात करनी नहीं आती होगी लड़कियों से या वगैरह-वगैरह, ऐसा कुछ भी नहीं था। सिंपल सा तर्क था की आईआईटी में लड़कियों की संख्या कम थी और उनसे बात करने वालों की बहुत। लड़कियों के अपने अच्छे सर्किल जल्दी और आराम से बन भी जाते थे। और अपन किसी भी लड़की के सर्किल में नहीं आते थे। हिस्सा बनाना भी नहीं था क्यूंकि अपने लड़कों का विशाल सर्किल ही बहुत था दिन भर के एंटरटेनमेंट के लिए। तोह बाय चॉइस अपनी बात होती ही नहीं थी लड़कियों से, ख़ास तौर पर अपने ईयर की लड़कियों से।
हमारे यहाँ फाइनल ईयर में फेयरवेल पार्टीज बहुत होती थी। जूनियर्स से बड़ा ही प्यार और सम्मान मिलता था। ऐसी ही किसी एक प्यारे जूनियर ने मुझे न्योता दिया फेयरवेल पार्टी का, जहाँ पर उसके ग्रुप के कुछ और ख़ास सीनियर्स भी मौजूद थे। दिलचस्प बात इस पार्टी की यह थी यहाँ पर मेरे ईयर के लोग थे पर मेरे सर्किल से नहीं। उनमें से मेरे ईयर की कुछ लड़कियां भी थी। अब जो मुझे जानते है की मेरा और पार्टीज का रिश्ता कैसा रहा है , वो समझ सकते है की इस पार्टी में बिना अपने लोगों के माहौल बनाना कितना मुश्किल था मेरे लिए। इसलिए महफ़िल के समीकरण को मद्देनज़र में रखते हुए , अपन एक कोने में पाइनएप्पल रायता लेकर बैठ गए। थोड़ी देर बाद हमारे ही ईयर की आर्किटेक्चर ब्रांच की स्नेहा आयी और शालीनता से, “हैए हाउ आर यू ?” पूछा। अपन ने भी आदर और सत्कार से जवाब दिया। फिर एक जेंटल लेडी जैसे उसने बोला की, “यू लुक रियली वेल टुडे”।
“थैंक यू एंड यू लुक रियली वेल एवरीडे” मेरी प्रतिक्रिया रही।
स्नेहा का भी कॉलेज में भोकाल था। कॉलेज के डांस ग्रुप की हेड , कमाल डांसर, व उसके सज्जन व्यवहार के कारण काफी प्रसिद्ध थी। समझदार भी थी तब ही शायद मुझे कोने में देख कर हालचाल पूछने आ गयी । हमारा कॉमन जूनियर ने हमें साथ बैठा देखा और हमारी ओर आने लगा। अपने सीनियर होने की जादुई शक्ति का इस्तेमाल करके मैंने उसे आँखों से इशारा करके उसका रास्ता मोड़ दिया।
अब मेरा ऐसा था की मुझे तोह स्नेहा की जनम कुंडली से लेकर उसके जीवन में क्या क्या चल रहा है सब पता था। पर घमंड नहीं किया और इस बात का शो ऑफ तो बिलकुल भी नहीं किया हम दोनों की बातचीत के दौरान। बातचीत का सिलसिला इस मोड़ पर आया की उसने पूछा की, “यार तुम्हारे बारे में मेरा एक ऑब्जरवेशन रहा है। अगर बुरा ना मानो तोह शेयर करूँ ?”
वाह तुमने ऑब्सेर्वे भी किया , ऐसा मेरा दिल बोलना चाहता था उससे। पर अपने दिमाग ने सहजता दिखाई और जवाब दिया की “हाँ हाँ , बिंदास बोलो।”
स्नेहा बोली की, “मैंने तुम्हे में कई बार लेक्चर हॉल,नेस्कैफे, हॉस्टल के बाहर, बहुत से लोगो के साथ घूमते फिरते देखा है। और इन सब ही जगह में तुम्हारा गेटउप कॉमन था , ब्लैक एंड ग्रे पाजामे में। मतलब मैं ऐसे कपड़ो या लुक्स के बेसिस पर जज नहीं कर रही , पर वो होता है ना की कुछ लोगों का गेटउप हमेशा फिक्स सा ही रहता है चाहे वो कहीं भी जाए। तुम्हारा सीन भी मुझे कुछ ऐसा ही लगता है।
दिल तोह मेरा उसकी इस ऑब्जरवेशन के लिए तालियां बजाना चाहता था। पर फिर दिमाग ने टेकओवर किया और 40 सेकंड तक चेहरे पर भीनी मुस्कान रखी और फिर जवाब दिया की,
“ऑब्जरवेशन तुम्हारा गज़ब सटीक है, और मेरे पास इस पजामा गेटउप के पीछे तर्कसंगत प्रतिक्रिया भी है। सुनना चाहोगी ?”
स्नेहा ने एक अच्छे श्रोता के तरह अपने सिर से हामी भर दी। मैंने बताया की इस गेटउप के पीछे तीन कारण मुख्य रहे हैं,
पहला है, कम्फर्ट। मैं अपना काफी वक़्त लोगों से मिलने जुलने में , नेस्कैफे पर बकैती करने में , टेबल टेनिस और पूल खेलने में , हॉस्टल-मेस-लेक्चर हॉल के चक्कर लगाने , जैसी गतिविधियों में दिनभर का 5-6 km का चलना तो ऐसे ही हो जाता था इसलिए पाजामे का कम्फर्ट बहुत जर्रूरी था।
दूसरा है, अप्प्रोचाबिलिटी। मेरा मानना है की पजामा आज के समय में यूनिवर्सल कपड़ा है जो हर कोई पहनता है।अब कोई टिप-टॉप शर्ट-जीन्स व बढ़िया घड़ी के साथ वाला इंसान या ऐसा कोई सर्किल जहाँ पर सब बढ़िया कपड़े पहनते है , वहाँ पर एक सामान्य आदमी थोड़ा तोह इन्फेरियरिटी काम्प्लेक्स फील करता है। पजामा गेटउप में मुझे ऐसा फील होता है की मेरे लोग मुझे अप्पार भोकाल के बाद भी अपना दोस्त-भाई जैसे मिलते हैं तथा लुक्स के मामले काम्प्लेक्स तो कभी भी फील नहीं करते हैं।
इन सब बातों के बीच दिल मेरा, संजीदे अंदाज़ में बैठकर बातों को धैर्य से सुनने वाली स्नेहा का फैन हो गया। स्नेहा के साथ मेरी ये पहली बातचीत थी पर मुझे समझ आ गया की आखिर क्यों इस लड़की के व्यवहार की तारीफ़ हर कोई करता है।
और तीसरा कारण है कॉम्प्लिमेंट्स। तोह होता क्या है ना की मेरे जैसे लोग जो कभी कभी ही तैयार होते है। अब हम अपने रेगुलर गेटउप से जब भी बहार आते है, तोह कॉम्प्लिमेंट्स जर्रूर मिलते है, जो की तुम भी मुझे दे चुकी हो। अब ऐसे कभी कभार मिलने वाली तारीफें अच्छी भी लगती है और ज्यादा ना मिलने पर लुक्स को लेकर घमंड भी नहीं हुआ।
अब स्नेहा के दिल में क्या चल रहा था ये तो वही जाने पर उसके दिमाग ने भी 40 सेकण्ड्स लिए और मुस्करा के बोली की, “वाह इतने अध्भुत और प्यारे विचार होंगे इस पजामा गेटउप के पीछे ये तोह नहीं सोचा था कभी।” मैंने भी हस्ते हुआ कहा की, “प्यारे का तोह पता नहीं, पर सोचा तोह मैंने भी नहीं था की अपनी दास्तान-ऐ-पजामा ऐसे व्यक्त करूँगा कभी।”
Thanks for the kind words 😊
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Can imagine the complete story in my head while reading. Keep it up!
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