वो गाँव वाले तारें
जिन्हें मैं घंटो निहारा करता
जब खुले आसमान के नीचे
गाँव में सोया करता |
वो गाँव वाले तारें
मुझसे बयां करते की
देख हम इतने सारे हैं
हम सबका अस्तित्व हमारी खुद की चमक से हैं
अगर हम टूटते भी है तोह किसी की चाहत पूरी करते हैं
हम कुछ गुच्छों में रहते है और कुछ तोह बहुत दूर
पर सब एक ब्रह्माण्ड में रहकर
इस आसमान की एकता झलकाते हैं |
वो गाँव वाले तारें
मुझसे बयां करते की
जब हम पृथ्वी को यहाँ से देखते हैं
तोह कुछ इंसानो की ही चमक देख पाते हैं
और रोज़ बहुतों को किसी कारण से टूटते हुए देखते हैं
साथ तोह तुम भी रहते हो पर रोज़ लड़ते हो
इतनी सी पृथ्वी पर भी न जाने
एकता से रहने की कोशिश क्यों नहीं करते हो?
