
पहला सुख निरोगी काया। ऋषि-मुनयों ने मनुष्य जीवन के सात सुखों में सबसे पहले स्वास्थ्य को ही रखा है। माँ के गर्भ से लेकर बुढ़ापे के अंतिम पड़ाव तक, स्वास्थ्य का ध्यान रखना हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रहता है। मूल बात ये है की अगर हम स्वस्थ हैं, तब ही हमारा जीवन है। स्वाभाविक बात है की जब स्वस्थ रहने की बात शारीरिक और मानसिक स्वस्थ दोनों के सन्दर्भ में हो रही है।
स्वस्थ रहने की परिभाषा सबकी अलग होती है और अलग होनी भी चाहिए। जिम वाले, योग वाले, स्पोर्ट्स वाले और इनमे से कुछ भी नहीं करने वाले, सबकी व्याख्या अलग होती है। फिलहाल मेरे लिए स्वस्थ रहने की परिभाषा है पौष्टिक आहार, अच्छी नींद, टहलना, भरपूर पानी पीना और मानसिक मज़बूती रखना। हालाँकि मुझे लगता है की, मैं अपने स्वास्थ्य को और बेहतर कर सकता हूँ, योग और व्यायाम के माध्यम से। पर इस भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में वक़्त की कमी का बहाना देकर, मैं सेहतमंद होने से खुद को वंचित कर रहा हूँ। सोचता तोह बहुत हूँ, मगर फिर भी सेहत को प्राथमिकता नहीं दे पाता। उम्मीद है की, अपनी इस विफलता को जल्द ही सफलता में तब्दील करूँ।
सीधी बात है, अगर आप स्वस्थ हैं तोह आप खुद का और अपने आस-पास वालों को ध्यान रख सकते हैं। आजकल के तनावपूर्ण जीवन शैली में तोह स्वास्थ रहने की जरूरत और भी बढ़ गयी है। स्वस्थ रहना जीवन की उन चुनिंदा चीज़ों में से है, जिस पर हमारा नियंत्रण हो सकता है। ऐसा नहीं है की स्वस्थ्य शरीर बीमार नहीं पड़ता है, पर एक स्वस्थ शरीर बीमारी से जल्दी उभरने का माद्दा रखता है। छोटा ही सही पर प्रयास अवश्य करें स्वास्थ्य रहने के लिए।
P.S- जो स्वस्थ है वो ही समस्त है और जो समस्त है वो ही सबसे मस्त है।
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