
जैसे सिक्के के 2 पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार हमारे दिमाग में भी सकारात्मक और नकारात्मक विचारों का वास होता है। इन दोनों की अपनी अहमियता है। हमारे जीवन में कई कार्य होते हैं जो इन दोनों के मिश्रण पर आधारित हैं। अब हमें बस ये आंकलन करना आना चाहिए की इन दोनों विचारों में से हम किनसे सबसे ज्यादा प्रभावित रहते हैं?
घर में किसी के रवैय्ये से जब मैं कभी बुरा महसूस करता हूँ, तब अक्सर उनको लेकर एक नकारात्मक प्रतिक्रिया बना लेता हूँ। फिर उनसे जुड़ी हर चीज़ में नकारात्मकता का सम्बन्ध बैठाने की कोशिश करता हूँ। अब मेरा बुरा महसूस करना जायज़ है पर नकारात्मकता की ये कड़ियाँ बनाना गलत है। क्यूंकि ऐसा करने से मेरा दृष्टिकोण ही गलत रूप में बदल तथा प्रभावित हो रहा है। अब क्यूंकि मुझे मेरे नकारात्मक विचारों से जुड़ी भावनाओं का एहसास है तोह अपनी नकारात्मक अवस्था में खुद से बहुत बातें करके उनका निपटारा करने का प्रयास करता हूँ।
आप शायद सोच रहे हैं की सकारात्मकता विषय के बजाय, मैं नकारात्मकता पर इतनी बात क्यों कर रहा हूँ? इस सन्दर्भ में मेरा मानना है कि, सकारात्मकता की महिमा तब ही पता चल पाती है, जब हमें नकारात्मकता के असर का ज्ञात हो। जिस प्रकार नकारात्मक विचार लगातार दिमाग में दौड़ते रहते हैं तोह उनको हराने के लिए हमें सकारात्मक विचारों को मैदान में उतारना पड़ता हैं। जितने भी जीवन शैली प्रशिक्षक हैं या स्वयं सहायता वाली किताबें हैं, वह सब इस पर ज़ोर देते हैं की हमें अपने जीवन की छोटी-छोटी धनात्मक चीज़ों की सराहना करनी चाहिए। सकारात्मक घटनाओं के प्रभावों को डायरी में लिखना चाहिए। अपने साथी के साथ पॉजिटिव बातें साझा करके उनके साथ अपने रिश्तों को मज़बूत बनाना चाहिए।
मैं ये नहीं कह रहा की हम दिन भर बस सकारात्मक सोचें या अति-सकारात्मक बन जाएँ। मैं बस यह बताने की कोशिश कर रहा हूँ की अगर हम अपने दिमाग में नकारात्मकता के पौधे को बड़ा नहीं करना चाहते हैं तोह उसके नज़दीक ही हमें अपने दिमाग में सकारात्मकता के बहुत से पौधे लगाने चाहिए ताकि हमारे दिमाग के साधनों को तदनुसार इस्तेमाल हो सकें।
P.S- थोड़ा सकारात्मक और थोड़ा नकारात्मक ताकि इंसान बनें आप रचनात्मक।
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