
पारम्परिक परिभाषा के अनुसार परिवार समाज की उस इकाई का नाम है जहाँ पर लोगों का सम्बन्ध रक्त से होता है। मेरी समझ में ये सम्बन्ध रक्त से परे होता है। परिवार का ढांचा मूल रूप से समर्थन प्रणाली पर आधारित रहता है। जहाँ पर माता-पिता कमाई तथा घरेलु काम के माध्यम से घर चलाते हैं। दादा-दादी के सहयोग से घर की नींव रखना तथा उनके अनुभवों के माध्यम से परिवार का मार्गदर्शन होता है। वहीँ बच्चों को हर संभव प्रयास से दुनिया के संघर्षो के लिए तैयार किया जाता ताकि वो आगे चलकर घर चला सकें और अपने बड़ों की देखभाल कर सकें। एक-दूसरे को सहयोग करना परिवार के बुनियादी मूल्यों में से एक है।
मेरी परवरिश में परिवार का एहम योगदान रहा है, जिसमे उनके सहयोग की क्षमता को काफी श्रेय जाता है। जिसके लिए मैं सदैव आभार प्रकट करता हूँ और ईश्वर को धन्यवाद् देता हूँ। मेरे मामले में तोह मुझे विस्तारित परिवार से भी बहुत स्नेह और सहयोग मिलता आया है। ऐसा नहीं है की, मैं अपने परिवार के सदस्यों की सारी बातें मानता हूँ या वो मेरी सभी बातों से सहमत होते हैं। सोच और विचारों के टकराव तोह चलते ही रहते हैं। उनका मुझ पर अच्छा-बुरा दोनों प्रभाव भी पड़ता है। अच्छे गुणों में मुझे मिला है संघर्ष-मेहनत का जज्बा, ईश्वर में विश्वास रखना, सहयोग करना इत्यादि। वहीँ बुरे गुणों में मिला है मुझे थोड़ा असुरक्षित-सा रहना,असन्तोषी की भावना इत्यादि।
इंसान की तरक्की में परिवार की महत्वता बहुत होती है। पर कई बार उसकी रूकावट में भी परिवार की भूमिका रहती है। अब सोचने की बात है फिर परिवार अच्छा हुआ या बुरा? जरूर सोचना समय निकल कर। क्यूंकि मैं मानता हूँ की परिवार में सभी लोग अगर सहयोग जैसे बुनियादी मूल्य को अपनाते तथा आदर करते हैं, तोह परिवार छोटा हो या बड़ा, गरीब हो या अमीर, हमेशा खुश रहेगा। वहीं अगर कोई परिवार सहयोग देने-लेने में नहीं मानता तथा विविध विचारों के बजाय एकसमान सोच पर ही रहने पर ज़ोर देता है, तोह उस परिवार को सम्पन होने में दिक्कतें आ सकती हैं। समर्थन प्रणाली जितनी मज़बूत होगी उतना ही मज़बूत परिवार होगा।
P.S- अगर ज़िन्दगी एक सफर है तोह परिवार उस सफर का सबसे खूबसूरत हमसफ़र है।
#30_DAYS_SERIES

अतिसुन्दर सत्य
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