
सफलता वो मीठा फल है जो हमारे उद्देश्य के बीज से उगता है। बीज लगाने के बाद इसे मेहनत रूपी पानी और कष्ट की धूप की चाहिए होती है। फिर भाग्य में मिले सही वातवरण और मौसम के अनुसार सफलता का फल आने लगता है। हम सब ने दूसरों की सफलता का स्वाद चख रखा है। इसलिए हमारे स्वयं के सफलता का फल होने की चेष्टा रखना बहुत स्वाभाविक है।
मेरी पहली सफलता थी अपने पैरों पर चलने की। फिर अगली सफलता थी अक्षरों को पहचानने की। अगली कामयाबी मिली जब साइकिल चला ली। उसकी अगली सफलता थी जब पढ़ाई में अव्वल नंबर आने लगे। फिर क्रिकेट में भी कामयाबी हाथ लगने लगी। बात ये है की, जब भी मैं अपने जीवन को बारीकी से देखता हूँ तोह स्वयं को कई कार्यों में सफल पाता हूँ। इसलिए जब कभी असफल होता हूँ तोह परेशान नहीं होता। क्यूंकि सफलता-असफलता तोह हमारे सफर के बस परिणाम हैं पूरा सफर थोड़ी ना है।
मैं पूर्ण से मानता हूँ की जीवन में सफल होना अत्यंत आवश्यक है क्यूंकि सफलता हमारे जीवन को बेहतर बनाती है। चूँकि सफलता का सीधा प्रभाव हमारे जीवन पर है इसलिए सफलता की परिभाषा और इसके मापदंड भी हमारे अनुरूप होने चाहिए। हमें अपनी सफलता की रेस का पता होना चाहिए। जीवन में सफलता की रेस, रिले रेस के समान होती है। जहाँ पर शुरुआत हमारे जोश के साथ होती है। फिर अगले पड़ाव में संघर्ष हमारे लिए दौड़ता है। फिर अगले पड़ाव में हमारे अपनों को सहारा मोर्चा संभालता है। और अंतिम पड़ाव में भाग्य का साथ मिलकर हम अपनी सफलता की मंज़िल तक पहुँच पाते हैं। अगर मंज़िल मिल जाती है तोह सफलता का फल मिल जाता है। और अगर फल ना मिले तोह भी कोई दिक्कत नहीं क्यूंकि हमारे पास फल-रहित पेड़ भले हो पर अब उसकी जड़ें अनुभवों से बहुत मज़बूत हो जाती है।
P.S- सफलता मात्र एक दिन में नहीं मिलती किन्तु एक दिन सफलता जरूर मिलती है।
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